विन्ध्य विभव के शुभ्र अंचल में विद्या - निलय यह शिक्षा-सार,
ज्ञानदीप आलोकित करता राजकीय महाविद्यालय, चुनार ।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विश्राम सिंह जी देशभक्ति का पावन नाम,
उच्च शिक्षा के इस परम निलय को आओ मिलकर करें प्रणाम !
भारत माँ की संधि भूमि यह हँस-हँस कर मिलते मैदान-पठार,
माँ विध्याचली बन सरस्वती ले उतरीं कर वीणा झंकार;
कला, ज्ञान, विज्ञान लुटातीं नित नित उन्नत नवोपहार,
वामपार्श्वी होकर गंगा बहतीं कल-कल छल-छल जलधार !
ज्ञानदीप...
पश्चिम दिसि से शीतला देवी करतीं सुशीतल यह संसार,
पूरब दिसि से शिवशंकरी वरदान बाँटती बारम्बार;
उत्तर को ही गंगा जातीं ले दक्खिनी विंध्य पर्वतमाला का सार,
धरती गाती, गगन है गाता, पत्थर गाता हरा-भरा संसार !
ज्ञानदीप....
नैनागढ़ चुनारगढ़ से आ रही अटल वीरों की पुकार,
स्वयं वीरता करती मानो मातृवंदन, जनाभिनंदन हो साकार;
साधक सिद्धि कारण उपजे भर्तृहरि उग्र सरीखे साहित्यकार,
शब्द, रुप, रस, गंध, स्पर्श से स्नात-सज्जित ज्यों अलंकार |
ज्ञानदीप...
सजल नैन उर सजल संवेदन मंजुल छवि यह पावन धाम,
उच्च शिक्षा के इस परम निलय को आओ मिलकर करें प्रणाम ।
आओ मिलकर.... 3
जय हिन्द !